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मनोरंजक कथाएँ >> भिखारी की अँगूठी

भिखारी की अँगूठी

दिनेश चमोला

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1988
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5081
आईएसबीएन :81-7043-371-1

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पाँच बाल कहानियों का संग्रह।

Bhikhri Ki Anguthi A Hindi Book by Denesh Chamola - भिखारी की अँगूठी - दिनेश चमोला

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भिखारी की अंगूठी

सेठ अमर देव अपने इलाके के बहुत बड़े सेठ थे। वे सभी की धन और अन्न से सहायता किया करते थे। वैसे वे कंजूस भी थे, फिर भी लोग यदा-कदा उन्हीं के पास धन उधार लेने आते थे। जिसका कि उन्हें भारी ब्याज भी चुकाना पड़ता था। इतने पर भी स्थानीय लोग उनका आदर ही करते थे। क्योंकि सभी को संकट के समय सेठ जी के यहाँ ही शरण मिलती थी । सेठ जी खुद को बहुत ही चतुर समझते थे। उन्होंने ढ़िढो़रा पिटवाया था कि जो उन्हें ठगेगा, उसे वह मुँहमाँगी मुद्रा से सम्मानित करेंगे।
सेठ जी का एक बेटा था नरदेव, जो बहुत आलसी था। उसकी आदतें अपने पिताजी से बिलकुल अलग थीं। सेठ को जहाँ भिखारियों से घृणा थी, वहीं भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिषियों से प्रेम था। सेठ जी किसी भी भिखारी को अपने इलाके में घुसने नहीं देते थे। इसलिए इलाके का समुदाय उनसे नाराज ही रहता था। नरहरि नामक एक सबसे वृद्ध भिखारी था जो सेठ जी की हर स्थिति को जानने लगा था।
एक दिन नरहरि ने सुन्दर कपड़े पहने व आकर्षक तिलक लगाया और सेठ जी के घर की ओर चल पड़ा। सेठ जी अपने कोषागार में मुद्रा गिन रहे थे। कि वह बूढा पंडित वहाँ पहुँचा। पण्डित जी का व्यक्तित्व आकर्षक था। सेठ जी यह देखकर बहुत प्रसन्न और प्रभावित हुए। उस बूढ़े पण्डित ने कहा-

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